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मिस्टर ब्लैक:—ए डार्क सुपरहीरो [3]

[काली छड़ी]








हिमाचल प्रदेश के सुदूर क्षेत्र में बसा एक छोटा सा गांव शिवपुर धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण गांव था। इस गांव में तकरीबन 100 परिवार रहते थे जोकि महादेव की अराधना करते थे। गांव के अंतिम छोर पर जंगल की सीमा के पास महादेव का एक विशाल मंदिर था। कहा जाता है की इस मंदिर का निर्माण उस समय कराया गया था जब उस गांव में पिशाचों का आतंक बढ़ गया था। वे खूंखार नरपिशाच जंगल से निकलकर गांव में आते थे और गांव के भोले भाले लोगो को अपना शिकार बनाते थे।

उस समय इन पिशाचों को गांव से दूर रखने के लिए गांव के लोगो ने मिलकर गांव की जंगल से सटी सीमा पर एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर के निर्माण के कुछ समय बाद पिशाचों का आतंक धीरे धीरे कम होने लगा और एक समय ऐसा आया जब उस गांव पर से पिशाचों का साया हमेशा हमेशा के लिए चला गया।

आज उसी मंदिर में महाशिवरात्रि के उपलक्ष में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया गया था और इसकी देख रेख का जिम्मा मंदिर के पुजारी वाल्मीकि और उसके परिवार ने अपने कंधों पर लिया था। रात्रि का समय हो गया था और गांव के सभी लोग मंदिर में एकत्रित हो गए थे।

पूजा की सभी तैयारियां हो गई थी कि तभी अचानक जोर जोर से हवा चलने लगी और मंदिर में जल रहे सभी दिए अनायास ही बुझ गए। हवा चलने पर दीयों का बुझना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन मंदिर में रखे वे दिए भी बुझ गए जिन्हें हवा ने स्पर्श भी नहीं किया था। कुछ समय पहले तक आसमान बिल्कुल साफ था लेकिन अब आसमान में काले घने बादलों ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था।

अब तक सबकुछ सामान्य था लेकिन अब अचानक ही चारो तरफ  मौत सा सन्नाटा पसर गया । जंगल के अंदर से कुत्तों और भेड़ियों के रोने की आवाजे आने लगी। मंदिर के सभी दिए बुझने से चारो तरफ घना अंधेरा छा गया।

"एक साथ इतने सारे अपसगुन! लगता है कोई संकट आने वाला है।" मंदिर के पुजारी वाल्मीकि ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा। पंडित वाल्मीकि एक चालीस वर्ष के व्यक्ति थे जिनके सिर पर शिखा के अतिरिक्त एक भी बाल नहीं था।

"संकट आ चुका है पंडित जी।" तभी पंडित वाल्मीकि को अपने पीछे से किसी युवक का स्वर सुनाई दिया। पंडित जी ने पीछे मुड़कर देखा तो मंदिर के पास चट्टान पर एक युवक बैठा हुआ था जिसने काले रंग की हुड पहनी हुई थी।

"कैसा संकट....और कौन हो तुम बालक।" पंडित वाल्मीकि ने उस युवक से पूछा।

वह युवक पंडित वाल्मीकि के पास जाकर खड़ा हो गया और बोला ;–" मेरे विषय में जानने से पहले एक बार आसमान में ध्यान से देखिए पंडित जी।""

पंडित व्यास ने आसमान की ओर ध्यान से देखा तो उनकी आंखे विस्फारित हो गई। अब तक वे जिन्हे काले घने बादल समझ रहे थे वे दरअसल बड़े बड़े पंखों वाले काले दैत्याकार चमगादड़ थे जिनकी खूंखार लाल आंखे आसमान में लाखो की संख्या में चमक रही थी।

"हे भोलेनाथ! ये कैसी प्रलय है।"" पंडित वाल्मीकि परेशान होते हुए बोले। जैसे ही उन्होंने युवक की तरफ देखा तो वह अपने स्थान से गायब था। उन्होंने इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया और थोड़ी ही दूर मंदिर के बुझे हुए दिए जला रहे अपने बेटे श्लोक को आवाज लगाई :– "श्लोक बेटा इधर आओ।"

" अभी आया पिताजी।" इतना कहकर श्लोक पंडित वाल्मीकि के पास पहुंच गया।

"तुम ऐसा करो की सभी गांववासियों को एक स्थान पर एकत्रित करो। आज सालो बाद इस गांव में फिर से वही प्रलय आने वाली है।" पंडित वाल्मीकि की आवाज में चिंता साफ झलक रही थी।

"कैसी प्रलय पिताजी।"  श्लोक जोकि एक सत्रह साल का युवक था ने अपने पिता पंडित वाल्मीकि से पूछा।

"सालो पहले इस गांव में पिशाचों का आतंक हुआ करता था। उस समय मै तुम्हारी ही उम्र का हुआ करता था। वे नरपिशाच रात के समय गांव में आते और गांव के लोगो और बेजुबान पशुओं को अपना शिकार बनाते थे। उस समय इस गांव में एक भी मंदिर नही था। तब मेरे पिताजी यानी तुम्हारे दादाजी ने सभी गांव वालो की सहमति से जंगल से लगी गांव की सीमा पर इस मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर की पवित्र ऊर्जा से वे पिशाच गांव से दूर रहते थे लेकिन अब लगता है की वे वापस आ गए है।" इतना कहकर पंडित वाल्मीकि चुप हो गए।

"अब तुम जाओ और गांव वालों को एक स्थान पर एकत्रित करो।" पंडित वाल्मीकि ने अपने बेटे श्लोक को आदेश देते हुए कहा।

"जी पिताजी।"" इतना कहकर श्लोक गांव के सभी लोगो को आवाज लगाकर एक स्थान पर एकत्रित होने के लिए बोलने लगा।

तभी अचानक हवाओ का प्रकोप बढ़ने लगा और एकाएक ही सैंकड़ों पंखों के फडफड़ाने की आवाजे आने लगी। आसमान में फैले पिसाच बड़ी तेजी से जमीन की तरफ बढ़ने लगे। अब तक गांव वाले एक स्थान पर एकत्रित हो चुके थे लेकिन आसमान से आ रहे उन विशालकाय जीवों को देखकर गांव वालों में भगदड़ मच गई। वे लोग चीखने चिल्लाने लगे। पंडित वाल्मीकि उन्हे ऐसा करने से रोक रहे थे लेकिन भीड़ के शोर मचाने की वजह से उनकी आवाज किसी तक नहीं पहुंच पा रही थी। वे पिशाच मंदिर के आस पास उड़ रहे थे और लोगो को एक एक करके उठाकर ले जा रहे थे।

अंधेरे में उनकी लाल आंखे बड़े खूंखार ढंग से चमक रही थी। पिशाच अब तक आधे गांव के लोगो को अपने साथ उठाकर ले गए थे। धीरे धीरे वे पिशाच वापस जंगल में चले गए। गांव के वे लोग जोकि मंदिर की परिधि के अंदर थे सुरक्षित बच गए। वे लोग काफी डरे हुए थे। उन्होंने अपने जीवन में पहली बार इतने खूंखार पिशाचों को देखा था अन्यथा अब तक उन्होंने पिशाचों के बारे में सिर्फ गांव के बुजुर्गो से सुना था।















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उन पिशाचों ने गांव वालो को ब्लैक रिवर के पास पटक दिया और फिर वे उड़ते हुए स्याह आसमान में विलीन हो गए।

"तुम लोगो का शैडो लैंड में स्वागत है।" तभी गांव वालों को मौत सी ठंडी और फुसफुसाती हुई आवाज सुनाई दी। जैसे ही वे लोग आवाज की दिशा में मुड़े तो उन्होंने देखा कि शैडो और वीर वहीं पास ही दैत्याकार वृक्ष के पास खड़े हुए थे। वीर के साथ उसकी वेयरवोल्फ की फौज भी वहां मौजूद थी जबकि शैडो के पिशाच हवा में इधर उधर उड़ रहे थे।

"कौन हो तुम लोग और हमे इस तरह से क्यों कैद किया है।"" तभी उन लोगों में से किसी ने हिम्मत करके पूछा। वह पंडित वाल्मीकि का बेटा श्लोक था।

"हम यहां तुम लोगो को मुक्ति देने के लिए लाए है।"" कहकर शैडो शैतानी हंसी हंसने लगा।

"क्या मतलब है तुम्हारा।"" श्लोक ने बड़ी बहादुरी से पूछा।

"मतलब तुम्हे अब समझ में आ जायेगा बच्चे।"" शैडो के इतना कहते ही एक पिशाच उड़ता हुआ आया और उसने श्लोक को उठाकर ब्लैक रिवर में फेंक दिया। ब्लैक रिवर से आग की स्याह लपटे निकलने लगी और श्लोक का शरीर नदी की सतह पर टकराने से पहले ही जलकर भस्म हो गया।

ये दृश्य देखकर बाकी लोगो का डर से बुरा हाल हो गया। उन लोगों के चेहरे पर मौत का खौफ साफ झलक रहा था। शैडो के इशारा करने के बाद आसमान से सैंकड़ों पिशाच आए और वे एक एक करके उन लोगों को उस नदी में फेंकने लगे और श्लोक की तरह ही नदी से निकलने वाली स्याह लपटों से वे सभी जलकर खाक हो गए।







To be continued..............


   9
3 Comments

🤫

10-Dec-2021 04:41 PM

Behtreen kahani ja rahi h aapki, shaido ka role... 😊😊

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Priyanka Rani

02-Dec-2021 12:11 AM

Nice

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kapil sharma

01-Dec-2021 05:08 PM

इस पार्ट में बहुत मज़ा आया , लेकिन पार्ट इतनी जल्दी खत्म हो जाएगा पता नही था ।। थोड़ा सा जल्दी नेक्स्ट पार्ट लाया करें आकांशा मैंम ।।

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